समाज का कड़वा सच-23

शिद्दत ए महफिल में ना मुस्कुरा सके, जाने क्यों लगने लगा अब मुझे डर, चेहरे पर मायूसी आंखों में आंसू लिए फिरते हैं, शायद यह तेरी ना मौजूदगी का ही है असर, न संगीने महफिल और मजाक होती अब, जब जब हो जाती थी रातें छोटी, जाने क्यों रुक मोड़ा हवाओं ने, जो दिन तो निकलता है पर रात ना होने देती, गैरों की क्या कहे अब तो अपने भी पराए लगते हैं, गम मिला है ,तुमसे ना कह सकूं, क्योंकि उनमें कुछ अपने भी तो हो सकते हैं, नहीं कहूंगा परवरिश में तेरी कोई कमी, बस थोड़े सुधार की है जरूरत, मैं डाटूं उन्हें या समझाऊँ,
उनमें भी झलकती है तेरी सूरत.....

आज की सुबह मेरे लिए न जाने क्या सोचकर आई थी, क्योकि कल रात थोड़ी तबीयत ठीक न होने के कारण रात में ली गई दवाइयों का असर कुछ ऐसा रहा , कि आज देर सुबह तक न तो आँखे खुली और न ही यह पता चला कि कब सूर्य नारायण खिड़की के झरोखे से उठकर क्षितिज पर जा पहुँचे , न जाने कितनी दिनों बाद मैं इतनी गहरी नींद सोया था , क्योकि भीरू की मृत्यु ने मुझे जैसे अपराध बोध की दुनिया में धकेल दिया था , मुझे रह रहकर हमेशा यही ख्याल आता कि मैंने उसे उस दिन खान की उस पैनल में जाने से क्यों नहीं रोका , जबकि वह इतने खतरे में था, पर फिर भी मैनें कोशिश तो बहुत की थी उसे रोकने की , पर वह सुनता किसकी था.....

           बड़का सरदार हमेशा यही कहते रहे कि यदि नसीब में लिखा होगा तो दस की जान बचाकर मरूँगा और नही तो सड़क पर तो अकेले लाखों मरते है, जो भला अपने लिये जिया , वह जीवन ही क्या...
      वास्तव में हम लोगों का पेशा ही ऐसा है , पृथ्वी के गर्भ में जाकर न जाने कितनी गहराई से उस काले हिरे को ढूँढकर लाना , जिसे निकालते -निकालते कई बार हमारा दिल भी काला हो जाता है , जिसके कारण न जाने कितने ही श्रमिकों की मौत हो जाती , क्योंकि आज तलक दुनिया का कोई भी ऐसा मेडिकल साइंस नहीं बना , जो खान कि   हवाओं  में मिले हुए कोल डस्ट जो एक बार दिल की परत से चिपक जाये , उसे निकाल पाने में सक्षम हो..........

                     यह कोई एक - दो दिन नहीं होता , वरन धीरे - धीरे कुछ इस तरह होता है , कि जब तक इसका पता लगे, तब तक बचने की उम्मीद ही खत्म हो चुकी होती है , और ऐसा भी नहीं  कि काम करने वाले को मालूम नही कि उसके साथ क्या होगा , या होने वाला है , लेकिन फिर भी उसका पूरी दुनिया को रोशन करने का जुनून और परिवार के सदस्यों की खुशी में चमकती आँखे देखकर वह खुद ही अपने आप में होने वाले परिवर्तन को अनदेखा कर आँखे मुन्द लेता है ,
                 वह भली भाँति जानता है कि जिस पैसो को वह तिल - तिल कर जोड़ रहा है उसके किसी काम का नही, रिटायरमेंट के पश्चात उसका उपयोग कर पाना कुछ श्रमिकों के लिए तो संभव भी नहीं होता , या यूँ कहूँ कि कुछ लोग तो रिटायरमेंट तक पहुँच भी नहीं पाते , शायद कुछ ऐसे ही दुर्भाग्यशाली लोगों में भीरू की भी  गिनती थी ,

             हम दोनों फिर भी सब कुछ जानते हुये हम दोनों के माता - पिता के लाख मना करने पर इस फिल्ड को चूना , और खदान की परीक्षा पास करते हुए वह सरदार तो मैं ओवरमेन पोस्ट पर आ गया , हम दोनों ने ही ज्वाइनिंग से लेकर अब तक का सफर यूँ ही हँसते खेलते बड़े ही साहसिक कार्यो को पूर्ण कर आसानी से उत्तम और सुरक्षित कोयला निकालने का कीर्तिमान प्राप्त करते हुए किया था ,
              और शायद इसीलिए हमारी परफॉर्मेंस रिपोर्ट को देखकर मैनेजमेंट हमें ऐसे खतरनाक फेस को सौंपने लगी , जहाँ किसी आम सुपरवाइजर से काम ले पाना एक दिन भी खतरे से खाली नहीं , क्योकि किसी बॉर्डर पर लड रहे सैनिक की तरह ही खान के काम  में भी आपकी छोटी सी चूक पूरे ग्रुप की मौत का कारण बन सकता है ,

और खासकर जब बात डिपलेरिंग सेक्सन की हो , तब तो खतरा सौ गुणा से भी ज्यादा बढ़कर हमेशा सर पर सवार रहता है , ऐसे समय में सुपरवाइजर अगर चौकन्ना न रहे तो पूरा ग्रुप एक साथ किसी बड़ी दुर्घटना का शिकार हो सकता है , और उस दिन भी ऐसा ही हुआ.......... भीरु सबको सेल्टर में छोड, मात्र एक टिंबर मेन और सफोट मिस्त्री को लेकर आगे बड़ा, मैने तभी उसे रोककर कहा था कि उस तरफ जरा सोचकर जाना क्योकि मुझे रुफ से कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई दे रही है , लगता है जल्दी गिर जायेगा , और उसने भी मेरी बात पर हामी भरते हुये कहा कि हाँ लगता तो ऐसा ही है , लेकिन प्रोडक्शन के लिए किसी न किसी को तो आगे बढ़ना ही होगा , ध्यान रखूँगा कहते हुये वह यह कहकर मेरी बात को टाल गया कि और फिर जब तक तुझ जैसी यारी है , मौत भला क्या पास आयेगी.........

काश उसकी बात सच होती , क्योकि जैसे ही वह आगे बड़ा और फेस में पहुॅचा ही था कि, तभी साथ में गये हुये टिम्बरमेन के कहे अनुसार उसने देखा कि आसपास के पिल्लर से लगातार गिरने वाला पानी बंद हो गया , और छत में कुछ दरार आ गई , जिसे देखते ही उसने तेजी से उस टिम्बर मेन और सफोट मिस्त्री को रोका ,और शांत रहने का कहे , दिल की धड़कन रोक अपना एक हाथ छत पर लगा , वहाँ पर होने वाली हलचलों और साउण्ड को शांत मन से सुनने लगा ,

                   तभी वो अचानक चीखा , भागों यहाँ से .... यह छत कुछ ही समय में गिरने वाली हैं , और जो भी दिखे उससे कहो जहाँ भी है , आड़ लेकर छुप जाये , इससे पहले की  वो कुछ और भी समझा  पाता , दोनों साथियों को उसने साइड वॉल की तरफ धक्का मार ठेल दिया, और बड़ी तेजी से उन्हें भागने का आदेश दे , खुद सिलवेस्टर चैन ले वहाँ के एक काग को खोलने  लगा , शायद उसे उम्मीद थी , कि यदि पास के सफोर्ट वाली छत बैठ जायेगी , तो शायद एयर प्रेशर से होने वाली बड़ी दुर्घटना को टाला जा सकता है .........       
                   टिम्बर मैन और सफोर्ट मिस्त्री ने  मेरे पास आकर बताया कि क्या माजरा है ? और मैं उनकी आधी बाते ही सुनते समझ गया कि क्या हो सकता है , और सबको वही रुखने का बोल , बेताहश पागलों की तरह भीरु की ओर दौड़ पड़ा , क्योंकि मैं यह जान चूका था , कि वह सबको बचाने के लिये खुद को दांव पर लगा रहा है , तब फिर मैं भला उसे अकेले कैसे छोड़ सकता हूँ.......

              मैंने देखा कि अब तक भीरु दो काग खोल चूका था , वह आखरी काग पर जोर लगाकर जैसे ही चैन खींचने के लिये हैंडिल घुमाया , रूफ स्पलिट होकर जैसे उसी जगह से दो भागों में बँट गया , और किसी पहाड़ की तरह चरचारते हुये गिरने लगा , ऐसे लगा वहाँ जैसे पत्थर और कोयले की बारिश हो रही हो , और देखते ही देखते वहाँ का हिस्सा पूरी तरिके से कोयले और पत्थर से भर गया ....
          वह मुझे देख चिल्लाया और बोला ये छत भी बैठने वाली है , भागों यहाँ से कहते हुए वह पलटकर मेरा हाथ पकड़कर भागने लगा ,तब मुझे किसी बच्चे की तरह आगे भागने को बोलते रहा और खुद मेरे पीछे - पीछे चलता रहा ,

          हम लगभग फेस से बाहर आ ही गये थे कि तभी धम्म्मम्म्म्म  की आवाज़  के साथ गोफ के अंदर का हिस्सा बैठा और तेज हवा के प्रेशर से लकड़ी का एक  बड़ा टुकड़ा   बड़ी तेजी से उड़ते हुये मेरी ओर बड़ा , जिसे तेजी से  भीरु ने आकर रोक लिया और वहीं गिर गया ,  मैंने उसे उठाने की लाख कोशिश कि, लेकिन आज बलिष्ट शरीर भी इतनी तेज हवा के झोंके से फेकाये  हुए लकड़ी के उस टुकड़े की मार को ना बर्दाश्त कर सका,
            जो वास्तव में मेरे लिये मौत बनकर आई थी, और वह बीच में अपनी दोस्ती का फर्ज अदा कर गया,  छोड़ गया तो सिर्फ मेरे लिए अपराध बोध भरी जिंदगी की, काश उस दिन मैं कुछ कर पाता तो आज भीरू मेरे साथ होता और इसलिए मैं सब कुछ जानते हुए भी उसके परिवार की लाख गलतियों को क्षमा करने के लिए विवश हूं।

क्रमश :...........

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